बिहार स्कूल स्वच्छता संकट: बिना वेतन वाले सफाई कर्मचारियों ने थामा मनुष्य राष्ट्रपति का हाथ

/ द्वारा parnika goswami / 0 टिप्पणी(s)
बिहार स्कूल स्वच्छता संकट: बिना वेतन वाले सफाई कर्मचारियों ने थामा मनुष्य राष्ट्रपति का हाथ

स्वच्छता संकट की जड़ें

बिहार के सरकारी स्कूलों में सफाई कर्मचारियों को वेतन न मिलने की समस्या अब शब्दों से परे हो गई है। हर महीने केवल बिहार स्कूल स्वच्छता के नाम पर फाइलों में दर्ज रखी जाने वाली कार्यवाही, जमीन पर गंदगी और रोगजनकों को जन्म दे रही है। हाल ही में साहarsa में ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार की गाड़ी के चारों ओर सफाई कर्मचारियों ने इकट्ठा होकर अवरोध बनाया, यह दर्शाता है कि वे अपना हक़ पाने के लिए कितने हताश हैं।

हब्बली जिले में 30 सरकारी स्कूलों में साफ‑सफाई कर्मचारी की गंभीर कमी है। लगातार बारिश ने स्थिति को और बिगाड़ दिया; पानी के ठहराव से मच्छर और मक्खियों की भरमार हो गई, जिससे छात्र डेंगू, मलेरिया, दस्त और बुखार जैसी बीमारियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो गए हैं।

शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2024‑25 में 1,913 स्कूलों में लड़कियों के लिये शौचालय नहीं है, जबकि 3,227 स्कूलों को बुनियादी सुविधाओं की कमी झेलनी पड़ती है। यह आंकड़े इस बात को भी उजागर करते हैं कि केवल फाइलों में ‘तीन साफ़ शौचालय लड़कों और लड़कियों के लिए, साथ ही एक महिला शिक्षक के लिये’ लिखना पर्याप्त नहीं है।

वित्तीय ढांचे की बात करें तो प्रत्येक स्कूल को छात्र संख्‍या के आधार पर ग्रांट दी जाती है—30 बच्चों तक वाले स्कूल को ₹2,000 से लेकर 251‑1,000 छात्रों वाले स्कूलों को ₹15,000 तक की निधि मिलती है। 2025‑26 के वित्तीय वर्ष के लिये अभी तक कोई ग्रांट जारी नहीं हुई है, और विभाग के अधिकारियों ने मान्यता दी है कि जब जारी भी हो, तो भी वह रख‑रखाव के लिये काफी नहीं होगी। माननीय अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ ने अगस्त में आज़ादी दिवस से पहले सभी सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करने का आदेश दिया, परन्तु वास्तविकता में स्कूलों की सफाई अभी भी ‘कागज़ पर ही’ है।

समाधान और भविष्य की राह

समाधान और भविष्य की राह

जूनियन और गैर‑सरकारी संगठनों की कई पहलें हैं, जैसे कि यूनीसेफ के समर्थन से चल रहा WASH (पानी, स्वच्छता, और स्वच्छता) प्रोजेक्ट, जो 38 जिलों में मॉडल स्कूल बनाने पर केंद्रित है। फिया फाउंडेशन, IZAD और प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सहयोग से इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है।

  • स्थानीय मैत्री फाउंडेशन द्वारा प्रशिक्षु कार्यशालाओं के माध्यम से शिक्षकों को साफ‑सफाई के महत्व के बारे में जागरूक किया जा रहा है।
  • नगरपालिका को सफाई कर्मचारियों के वेतन में देरी को खत्म करने की अपील की गई है, परंतु प्रशासनिक जड़ता अभी भी बनी हुई है।
  • भविष्य में, स्कूल विकास एवं निरीक्षण समितियों को निष्पक्ष रूप से कार्य करने और वास्तविक कार्यवाही को फाइलों में दर्ज करने के लिए सख़्त निगरानी आवश्यक होगी।

वर्तमान में, कई स्कूलों में बुनियादी शौचालयों की कमी को पूरा करने के लिये स्थानीय स्तर पर स्वयंसेवकों ने अस्थायी ढांचा स्थापित किया है। लेकिन यह समाधान अस्थायी है; स्थायी सुधार तभी संभव है जब राज्य सरकार समय पर ग्रांट जारी करे, तथा सफाई कर्मचारियों को उनका उचित वेतन और भत्ते मिलें।

सफाई कर्मियों की आय के बारे में बताया गया है कि उन्हें केवल ₹3,000 की मानदेय मिलती है, जो कि बुनियादी जीवनयापन के लिये भी पर्याप्त नहीं है। कई मामलों में यह वेतन कई महीनों तक रोका गया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ गई। इन कर्मचारियों की यह समस्या शिक्षा विभाग की वित्तीय योजना में एक गंभीर खामि को दर्शाती है।

जैसे-जैसे मानसून का मौसम आगे बढ़ रहा है, स्कूलों के आसपास जलजमाव और गंदगी की समस्या बिगड़ती जा रही है। इस संकट को हल करने के लिये तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है, अन्यथा बीमारी के प्रकोप से छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी और दीर्घकालिक रूप से राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी बोझ पड़ेगा।

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