बिहार की विधानसभा चुनाव प्रक्रिया में अभूतपूर्व घटनाएँ घट रही हैं। नामांकन दाखिल करते ही चार विपक्षी उम्मीदवारों की गिरफ्तारी की गई, जिसने राजनीतिक दुनिया में तूफान ला दिया। इनमें से सबसे ताजा मामला 20 अक्टूबर, 2025 को हुआ, जब आरजेडी के उम्मीदवार सतेंद्र साह को जारखंड पुलिस ने सासाराम विधानसभा क्षेत्र के लिए नामांकन दाखिल करते समय गिरफ्तार कर लिया। यह एक श्रृंखला का हिस्सा है — जिसमें सीपीआई(एमएल) लिबरेशन के दो उम्मीदवार और एक स्वतंत्र उम्मीदवार भी शामिल हैं। ये गिरफ्तारियाँ सिर्फ कानून की बात नहीं, बल्कि चुनाव के दौरान राजनीतिक बदले की एक ठोस रणनीति लग रही हैं।
नामांकन के तुरंत बाद गिरफ्तारी: एक अजीब अनुक्रम
13 अक्टूबर, 2025 को वैशाली के लालगंज विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने वाले स्वतंत्र उम्मीदवार अखिलेश कुमार को उनके भाई के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर 2024 में एक पुराने ट्रैक्टर की खरीदारी में धोखाधड़ी का मामला दर्ज था। अखिलेश ने इसे "पूरी तरह बेमानी" बताया। लेकिन नामांकन के तुरंत बाद ही गिरफ्तारी — ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा गया।
अगले दिन, 14 अक्टूबर, सीपीआई(एमएल) लिबरेशन के वर्तमान विधायक सत्यदेव राम को सीवान में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर 2005 का एक पुराना मामला था — डारौंडा रेलवे स्टेशन पर बिना अनुमति के रेल रोको का आयोजन। इसके लिए सोनेपुर रेलवे अदालत ने 2005 में ही एक स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। लेकिन अब, चुनाव के दौरान, यह वारंट अचानक लागू हो गया।
15 अक्टूबर को गोपालगंज के हथवा उपखंड कार्यालय में भोर विधानसभा के लिए नामांकन दाखिल करते समय जितेंद्र पासवान को गिरफ्तार कर लिया गया। गोपालगंज के सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस अवधेश दिक्षित ने कहा, "पासवान एक 2017 के आत्महत्या के प्रयास के मामले में ट्रायल के दौरान थे और अदालत के बुलावे से बच रहे थे।" लेकिन यहाँ एक अजीब बात है — अगर वारंट पहले से था, तो वह क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया? यह सवाल आज भी जवाब का इंतज़ार कर रहा है।
सतेंद्र साह: एक ऐसा मामला जिसमें 20 से ज्यादा अपराध हैं
20 अक्टूबर को गिरफ्तार सतेंद्र साह के खिलाफ जारखंड के गढ़वा जिले की पुलिस रिकॉर्ड्स में 20 से अधिक मामले दर्ज हैं — चोरी, डकैती, हथियार अधिनियम के उल्लंघन। सबसे गंभीर मामला 2004 का एक बैंक डकैती है, जिसमें चिरौनिया मोर पर बैंक की चोरी की गई थी। एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस मामले के लिए 2018 में स्थायी वारंट जारी किया गया था। लेकिन अब, चुनाव के दिनों में, इसे तुरंत लागू किया गया।
साह के नामांकन दाखिल करने के बाद जब वह चक्र अधिकारी के कार्यालय से बाहर निकल रहे थे, तभी जारखंड पुलिस के अधिकारी आए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें नामांकन दाखिल करने की अनुमति भी नहीं दी गई। यह एक ऐसा संकेत है जो बिहार के चुनाव आयोग के लिए एक बड़ा चुनौतीपूर्ण प्रश्न है।
सीपीआई(एमएल) लिबरेशन का आरोप: राजनीतिक बदला और पुलिस का दुरुपयोग
सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने एक औपचारिक बयान जारी करते हुए कहा, "हम जितेंद्र पासवान और सत्यदेव राम की राजनीतिक रूप से प्रेरित गिरफ्तारियों की जोरदार निंदा करते हैं। ये गिरफ्तारियाँ नामांकन केंद्र के बाहर हुईं, और ये झूठे और बेमानी आरोपों के तहत की गईं।" उन्होंने आगे कहा कि "एनडीए नेता अपने असफल 'डबल इंजन' सरकार के खिलाफ लोगों के बढ़ते आवाज़ से डर रहे हैं।"
यह बयान सिर्फ एक दल की आवाज़ नहीं है। गोपालगंज में जितेंद्र पासवान के गिरफ्तार होने के बाद उनके समर्थकों ने तीव्र प्रतिक्रिया दी। हथवा डीसीएलआर कार्यालय के बाहर भीड़ जमा हो गई। लोग नारे लगा रहे थे — "पुलिस ने चुनाव को बाधित किया!" और "अदालत नहीं, राजनीति ने गिरफ्तार किया!"
क्या यह सिर्फ बिहार की बात है?
यह घटना बिहार तक सीमित नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भी कई विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन के बाद गिरफ्तार किया गया था। लेकिन अब, एक जिले में तीन उम्मीदवारों की गिरफ्तारी — एक दल के अंदर — एक नया मोड़ है।
चुनाव आयोग को अब एक कठिन फैसला लेना होगा। क्या ये सभी गिरफ्तारियाँ कानून के तहत हैं? या यह एक राजनीतिक रणनीति है? अगर यह राजनीति है, तो चुनाव की निष्पक्षता क्या होगी?
अगला क्या होगा?
चुनाव दो चरणों में होंगे — 6 नवंबर और 11 नवंबर, 2025। नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। अभी तक गिरफ्तार उम्मीदवारों को अदालत में पेश किया जाएगा। सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने भोर और हथवा में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है।
यहाँ एक अहम बात है — अगर इनमें से कोई भी उम्मीदवार चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं है, तो चुनाव आयोग को उनके नामांकन को रद्द करना चाहिए। लेकिन अगर गिरफ्तारी राजनीतिक है, तो उनके नामांकन को बरकरार रखना ही न्यायसंगत होगा।
लोग क्या कह रहे हैं?
गोपालगंज के एक छोटे व्यापारी ने कहा, "अगर एक आदमी ने 2005 में रेल रोको किया, तो अब 2025 में उसे गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है? अगर वह अपराधी है, तो वह पहले ही जेल में होता।"
एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, "यह एक ताकत का दर्शन है। जब लोग बदलाव चाहते हैं, तो शासक उन्हें डरा देते हैं। लेकिन यह डर काम नहीं करेगा। बिहार के लोग अब तक बहुत कुछ देख चुके हैं।"
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या गिरफ्तार उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं?
कानून के मुताबिक, अगर किसी उम्मीदवार पर गंभीर अपराध का मामला दर्ज है और उसके खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी है, तो वह चुनाव लड़ने के योग्य नहीं होता। लेकिन यहाँ सवाल यह है कि ये मामले पहले से मौजूद थे। अगर ये गिरफ्तारियाँ चुनाव के लिए जानबूझकर तारीख देकर की गईं, तो यह चुनाव आयोग के लिए एक न्यायिक चुनौती है।
इन गिरफ्तारियों का बिहार के चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
इन घटनाओं ने विपक्षी दलों के बीच एकता को बढ़ाया है। आईएनडीए ब्लॉक के लोग अब अपने नेताओं को गिरफ्तार किए जाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन यह बात भी सामने आ रही है कि लोग अब निष्पक्षता की उम्मीद कर रहे हैं। अगर चुनाव आयोग इन मामलों को न्यायसंगत तरीके से नहीं सुलझाता, तो चुनाव की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं।
क्या यह पहली बार है जब चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को गिरफ्तार किया गया?
नहीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भी कई विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन के बाद गिरफ्तार किया गया था। लेकिन बिहार में एक ही दल के तीन उम्मीदवारों की एक साथ गिरफ्तारी — यह पहली बार है। यह एक नया नमूना है, जिसमें न्यायपालिका और पुलिस के बीच राजनीति का अंतर धुंधला हो रहा है।
चुनाव आयोग क्या कर सकता है?
चुनाव आयोग के पास दो विकल्प हैं — या तो इन उम्मीदवारों के नामांकन को रद्द कर देना, जिससे विपक्षी दलों को नुकसान होगा, या फिर इन गिरफ्तारियों को राजनीतिक दबाव के तहत देखकर उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति देना। अगर वह न्याय करना चाहता है, तो उसे एक स्वतंत्र जाँच समिति बनानी चाहिए, जो यह तय करे कि क्या ये मामले वास्तव में अपराध हैं या राजनीतिक बदला हैं।
Mahesh Goud
ये सब बस एक बड़ा धोखा है भाई। पुलिस वाले किसी भी विपक्षी को नामांकन के तुरंत बाद गिरफ्तार कर रहे हैं, लेकिन जो भी एनडीए के लोग हैं, उनके खिलाफ 100 मामले हैं और वो आज तक बाहर हैं। ये सिर्फ चुनाव नहीं, ये तो राजनीतिक अपराध है। अगर तुम्हारे खिलाफ एक वारंट है तो 2005 में ही गिरफ्तार कर लेते, ना कि अब जब तुम चुनाव लड़ने वाले हो। ये जो लोग ये सब ठीक बता रहे हैं, वो अपने घर में बैठे बातें कर रहे हैं। असली दुनिया में तो ये सब एक ताकत का खेल है।
Ravi Roopchandsingh
ये सब बस बिहार की बात नहीं है भाई 😤 ये तो पूरे देश की बात है। जब भी कोई विपक्षी बल बन रहा हो, तो राज्य की पुलिस उसे गिरफ्तार कर देती है। 2019 में यूपी में भी ऐसा हुआ था। लेकिन अब ये तो नया लेवल है - एक ही दल के तीन उम्मीदवार एक साथ? ये तो डिज़ाइन किया गया है। चुनाव आयोग को अपना ड्यूटी निभाना चाहिए, ना कि बस बैठे रहना। #JusticeForCandidates
dhawal agarwal
हम जब राजनीति को न्याय के बाहर देखने लगे, तो ये सब घटनाएँ अचानक बहुत स्पष्ट हो जाती हैं। ये गिरफ्तारियाँ अगर न्याय की बात होती, तो पहले ही हो चुकी होतीं। लेकिन जब एक व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए तैयार होता है, तो उसके खिलाफ पुराने मामले अचानक जीवित हो उठते हैं। ये न्याय नहीं, ये डर की रणनीति है। हमें इस तरह के खेलों से ऊब चुके हैं। हम चाहते हैं कि लोग अपने विचारों के लिए लड़ें, ना कि जेल में बंद होकर।
Shalini Dabhade
अरे भाई, ये सब बस विपक्ष की चिल्लाहट है। अगर उम्मीदवार के खिलाफ मामले हैं, तो उसे गिरफ्तार करना क्या गलत है? तुम लोग अपने नेताओं को बचाने के लिए ये सब राजनीति बना रहे हो। चोरी, डकैती, आत्महत्या का मामला - ये सब अपराध हैं। अगर तुम्हारा नेता अपराधी है, तो उसे जेल में डालना ही न्याय है। ये चुनाव नहीं, ये अपराध बाजार है।
Jothi Rajasekar
दोस्तों, बस थोड़ा शांत हो जाओ। ये सब बहुत बड़ी बात है, लेकिन हमें अपने दिमाग से सोचना होगा। अगर किसी के खिलाफ कोई मामला है, तो उसे न्याय के रास्ते से हल करना चाहिए। लेकिन अगर ये चुनाव के लिए तैयार किया गया है, तो ये बहुत खतरनाक है। हमें चुनाव आयोग को दबाव डालना चाहिए, ना कि एक-दूसरे पर गुस्सा करना। एक अच्छा भारत बनाना है, तो एक साथ चलना होगा। 💪
Irigi Arun kumar
ये सब एक बहुत बड़ा नमूना है। जब तक हम अपने नेताओं को बचाने के लिए न्याय को बदल नहीं देंगे, तब तक ये चलता रहेगा। लेकिन ये भी देखो - जितेंद्र पासवान का मामला 2017 का है, लेकिन उन्हें तभी गिरफ्तार किया गया जब उन्होंने नामांकन दाखिल किया। अगर वारंट पहले से था, तो वो गिरफ्तार क्यों नहीं हुए? ये सवाल कोई नहीं जवाब दे रहा। ये बस एक न्याय का नाटक है। लोग अब इसे देख रहे हैं।
Jeyaprakash Gopalswamy
मैं तो बस एक साधारण इंसान हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि अगर किसी के खिलाफ गंभीर अपराध का मामला है, तो उसे गिरफ्तार करना ठीक है। लेकिन अगर ये चुनाव के लिए टाइमिंग की गई है, तो ये गलत है। मैंने देखा है कि जब कोई व्यक्ति अपने गाँव के लिए लड़ने आता है, तो उसके खिलाफ अचानक पुराने मामले उठ जाते हैं। ये न्याय नहीं, ये बदला है। चुनाव आयोग को इसे रोकना चाहिए। हमें अपने नेताओं को न्याय के साथ चुनना चाहिए, ना कि डर के साथ।
ajinkya Ingulkar
इन सब गिरफ्तारियों को देखकर मुझे लगता है कि हमारी जनता अब तक बहुत कुछ झेल चुकी है। लेकिन अब तो ये बात बहुत आगे बढ़ गई है। एक व्यक्ति जो 2005 में रेल रोको करता है, उसे 2025 में गिरफ्तार किया जाना? ये न्याय का नाम नहीं, ये तो राजनीति का जहर है। अगर ये चलता रहा, तो अगली बार तो किसी ने अपना नामांकन भी नहीं दाखिल करना होगा। ये चुनाव आयोग का निष्कर्ष है - या तो तुम न्याय करो, या फिर अपना अधिकार छोड़ दो।
nidhi heda
ओ माय गॉड 😱 ये सब क्या हो रहा है? मैंने सोचा था बिहार में तो बस नामांकन होता है, लेकिन अब तो नामांकन के बाद गिरफ्तारी?! 😭 मैं तो बस एक छोटी सी लड़की हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि ये बहुत बुरा है। क्या कोई बता सकता है कि अब क्या होगा? मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि मेरे नेता चुनाव लड़ सकें। ये न्याय नहीं, ये तो बहुत भयानक है। 🙏
DINESH BAJAJ
अरे ये सब बस विपक्ष की गुमराही है। जिनके खिलाफ मामले हैं, उन्हें गिरफ्तार करना ठीक है। तुम लोग अपने नेताओं को बचाने के लिए ये सब बहाना बना रहे हो। चोरी, डकैती, आत्महत्या का प्रयास - ये सब गंभीर अपराध हैं। अगर तुम्हारा नेता अपराधी है, तो उसे जेल में डालना ही न्याय है। ये चुनाव नहीं, ये अपराध बाजार है।
Rohit Raina
ये बात बहुत गहरी है। अगर चुनाव आयोग ने ये गिरफ्तारियाँ रोक दी होतीं, तो ये अब तक नहीं होता। लेकिन उन्होंने बस देखा। ये न्याय नहीं, ये एक चुनाव का नियम बन गया है - जो विपक्षी हो, उसे गिरफ्तार कर दो। अब ये बात बहुत बड़ी है। अगर हम इसे नहीं रोकेंगे, तो अगली बार कोई भी विपक्षी नामांकन नहीं दाखिल करेगा।
Prasad Dhumane
इस तरह की घटनाओं को देखकर मुझे लगता है कि हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ न्याय की बजाय राजनीति न्याय का नाम लेती है। ये गिरफ्तारियाँ अगर न्याय की बात होती, तो वो पहले ही हो चुकी होतीं। लेकिन जब कोई चुनाव लड़ने वाला होता है, तो उसके खिलाफ नए मामले खुल जाते हैं - जो पहले से थे, लेकिन बरकरार थे। ये एक ताकत का खेल है। और अगर हम इसे नहीं रोकेंगे, तो भारत का लोकतंत्र एक बहाने के रूप में बच जाएगा।
rajesh gorai
इस घटना में हमें एक डायनामिक राजनीतिक एक्सप्लॉइटेशन का फ्रेमवर्क दिख रहा है - जहाँ न्यायिक अधिकार का उपयोग एक डिस्क्रिमिनेटरी एक्सटर्नल इन्फ्लूएंस के रूप में हो रहा है। इसका मतलब है कि चुनावी प्रक्रिया को एक डिजिटल ऑपरेशन की तरह बनाया गया है, जहाँ एक टाइमिंग अल्गोरिदम के जरिए विपक्षी नेताओं को सिस्टमेटिकली एलिमिनेट किया जा रहा है। ये न्याय नहीं, ये एक राजनीतिक अप्रोच है।
Rampravesh Singh
चुनाव आयोग को तुरंत एक अलग न्यायिक टीम बनानी चाहिए, जो इन मामलों की जाँच करे। ये गिरफ्तारियाँ न्याय के नाम पर नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव के नाम पर हुई हैं। यहाँ न्याय की बजाय एक अनैतिक रणनीति अपनाई जा रही है। इसलिए, चुनाव आयोग को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और इन उम्मीदवारों के नामांकन को बरकरार रखना चाहिए। यही सही रास्ता है।
Akul Saini
इस बार बात अलग है। पहले भी गिरफ्तारियाँ हुईं, लेकिन अब एक ही दल के तीन उम्मीदवार एक साथ गिरफ्तार हुए - और ये सब नामांकन के तुरंत बाद। ये एक नमूना है। अगर ये चलता रहा, तो अगली बार कोई भी विपक्षी नामांकन नहीं दाखिल करेगा। चुनाव आयोग को अब एक स्वतंत्र जाँच समिति बनानी होगी। ये न्याय की बात नहीं, ये एक खेल है।
Arvind Singh Chauhan
मैं नहीं कह रहा कि ये गिरफ्तारियाँ गलत हैं। लेकिन जब एक व्यक्ति के खिलाफ 20 मामले हैं, और उसे नामांकन के बाद ही गिरफ्तार किया जाता है - तो ये बहुत अजीब है। अगर ये मामले असली हैं, तो वो पहले ही हो चुके होते। ये एक तरह का न्याय का दुरुपयोग है। मैं नहीं चाहता कि चुनाव आयोग बस देखता रहे।
AAMITESH BANERJEE
दोस्तों, मैं बिहार का इंसान हूँ। मैंने यहाँ के चुनाव देखे हैं। लेकिन ये बात अलग है। ये न्याय नहीं, ये डर का खेल है। अगर किसी के खिलाफ मामला है, तो उसे न्याय के रास्ते से हल करना चाहिए, ना कि चुनाव के दौरान गिरफ्तार करना। मैं चाहता हूँ कि हम सब एक साथ चलें। ये तो बस एक बहाना है। चुनाव आयोग को इसे रोकना चाहिए।
Akshat Umrao
ये सब देखकर मुझे लगता है कि हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ न्याय की बजाय राजनीति न्याय का नाम लेती है। अगर ये चलता रहा, तो अगली बार कोई भी विपक्षी नामांकन नहीं दाखिल करेगा। चुनाव आयोग को अब एक स्वतंत्र जाँच समिति बनानी होगी। 🤝
Sonu Kumar
अरे, ये तो बहुत ही बुरा है। इस तरह की घटनाओं को देखकर मुझे लगता है कि हमारी जनता अब तक बहुत कुछ झेल चुकी है। लेकिन अब तो ये बात बहुत आगे बढ़ गई है। एक व्यक्ति जो 2005 में रेल रोको करता है, उसे 2025 में गिरफ्तार किया जाना? ये न्याय का नाम नहीं, ये तो राजनीति का जहर है।
sunil kumar
इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया और राजनीतिक रणनीति के बीच एक स्पष्ट रेखा नहीं है। चुनाव आयोग को अपनी भूमिका को स्पष्ट करना चाहिए। ये गिरफ्तारियाँ कानून के तहत हैं या नहीं - इसकी जाँच एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय द्वारा की जानी चाहिए। नहीं तो चुनाव की वैधता पर सवाल उठ सकता है।