छत्र नवरात्रि 2025 दिवस 2: माँ ब्रह्मचारिणी पूजा समय, मंत्र, भोग, रंग व फूल

/ द्वारा parnika goswami / 0 टिप्पणी(s)
छत्र नवरात्रि 2025 दिवस 2: माँ ब्रह्मचारिणी पूजा समय, मंत्र, भोग, रंग व फूल

वसंत नवरात्रि, जिसे छत्र नवरात्रि 2025 भी कहा जाता है, 30 मार्च से 7 अप्रैल तक नौ दिनों तक चलती है। इस अवधि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिसमें प्रत्येक दिन एक अलग स्वरूप को समर्पित रहता है। इस वर्ष के दूसरे दिन का विशेष महत्व माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना में निहित है, जो पार्वती जी की अविवाहित और तपस्वी अवस्था को दर्शाती हैं।

माँ ब्रह्मचारिणी का महत्व और आध्यात्मिक प्रतीकत्व

माँ ब्रह्मचारिणी का अर्थ है "विचारशील और तप में लीन"। वह भक्ति, धैर्य और आत्मसंयम का प्रतीक हैं। इस दिन की पूजा से जीवन में आध्यात्मिक उन्नति, मन की शुद्धता और अंदरूनी शक्ति में वृद्धि होती है। कई शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्मचारिणी की कृपा से मन के अंधकार को दूर किया जा सकता है और आत्मा को प्रकाश मिल सकता है। इस प्रकार, इस दिन का उपवास और मंत्र जप केवल शारीरिक शुद्धि नहीं, बल्कि मन की शुद्धि का भी साधन है।

भक्त जन इस दिन विशेष रूप से शुद्धता के लिए सफेद वस्त्र पहनते हैं, क्योंकि सफेद रंग शुद्धता, शांति और निरन्तरता को दर्शाता है। साथ ही, चमेली के फूल को देवी के प्रसाद में अर्पित किया जाता है, जो भक्ति और आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतीक है। इन प्रतीकों को देखते हुए, कई घरों में सुबह जल्दी उठकर छत्र नवरात्रि 2025 के द्वितीया तिथि के मुहूर्त में गह्वरस्थापना और जल-परात की रस्में की जाती हैं।

दिवस 2 की पूजा विधि और अभ्यास

दिवस 2 की पूजा विधि और अभ्यास

पूजा का सही समय द्वितीया तिथि के मुहूर्त से तय होता है। यह तिथि 30 मार्च को सुबह 09:19 बजे शुरू होकर 31 मार्च को 05:41 बजे समाप्त होती है। इस अवधि के भीतर सभी अनुष्ठान करने से मान्यता प्राप्त लाभ मिलते हैं। प्रमुख चरण इस प्रकार हैं:

  • सवेरे 6:13 से 10:22 बजे के बीच घटस्थापना (Ghatasthapana) का सम्पन्न होना चाहिए, जिससे ऊर्जा का संचार हो जाता है।
  • उपवास रख कर शुद्ध शाकाहारी भोग तैयार करें; मुख्य भोग में चावल, दाल, फलों का हलवा और शाकाहारी मिठाई शामिल हो सकती है।
  • पूजास्थल पर माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें, सफेद वस्त्र से सजाएँ और चारों ओर चमेली के फूल बिछाएँ।
  • पूजा में देवी को लाल अक्षर में ‘ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः’ का मंत्र बार-बार जपें, साथ ही गायत्री मंत्र भी अच्छा माना जाता है।
  • पूजा के अंत में प्रातःकालीन कर्तव्य (नमस्कार) और स्नान कर स्वच्छता बनाए रखें।

पूजा के बाद भक्तजन अपने घर में या मंदिर में प्रसाद वितरित करते हैं, जिससे एकजुटता और सामुदायिक भावना का विकास होता है। कई लोग इस दिन की रात को आध्यात्मिक कथा या भजन संध्या का आयोजन भी करते हैं, जिससे घर में दिव्य शांति का संचार होता है।

वसंत नवरात्रि भारत भर में विभिन्न सांस्कृतिक स्वरूपों में मनाई जाती है। महाराष्ट्र में यह गुरु पड़वा से शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगादी के साथ मिलकर नया हिन्दू वर्ष शुरू होता है। इन विविधताओं के बीच, माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित दूसरा दिन सभी क्षेत्रों में एक समान भावनात्मक महत्व रखता है। इस दिन की आध्यात्मिक ऊर्जा को समझ कर, हर परिवार अपने जीवन में शांति, धैर्य और आत्मविकास को बढ़ावा दे सकता है।

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