झारखंड विधानसभा चुनाव: सहानुभूति की लहर पर सवार होने की कोशिश में हेमंत सोरेन

/ द्वारा रिमा भारती / 0 टिप्पणी(s)
झारखंड विधानसभा चुनाव: सहानुभूति की लहर पर सवार होने की कोशिश में हेमंत सोरेन

झारखंड में राजनीतिक परिदृश्य

झारखंड के विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं और राजनीतिक पारा चढ़ता दिखाई दे रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम (झारखंड मुक्ति मोर्चा) के प्रमुख नेता हेमंत सोरेन, जिन्हें हाल ही में एक भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तार किया गया था, अब जमानत पर बाहर हैं। हेमंत सोरेन इन चुनावों में सहानुभूति का लाभ उठाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा चुनावों में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है, लेकिन विधानसभा चुनाव में यह जीत उतनी आसान नहीं दिख रही है। राज्य में राजनीतिक हालात दिन-ब-दिन बदल रहे हैं। कांग्रेस ने भाजपा के कई विधायकों को अपने पाले में कर लिया है, जिसमें प्रमुख नाम जयप्रकाश भाई पटेल का है जिन्होंने भाजपा की मुख्य सचेतक के रूप में कार्य किया था।

हेमंत सोरेन और परिवार की सक्रियता

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने जनता के बीच पहुंच बनाई और अपने पति द्वारा शुरू की गई योजनाओं और परिवार की धरोहर पर जोर दिया। उन्होंने रैली और सभाओं के माध्यम से जनता को ये बताने की कोशिश की कि उनके पति ने राज्य के विकास के लिए कैसे काम किया है।

इस बीच जेएमएम ने पार्टी की भीतर का समर्थन मजबूती से जुटाते हुए हेमंत सोरेन को फिर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायकों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया, जिससे पार्टी की एकजुटता का संदेश जाता है।

भाजपा की चुनौतियाँ

भाजपा को इस बार कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जो विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, उनमें पार्टी की मुख्य सचेतक जयप्रकाश भाई पटेल भी शामिल हैं, जिसका असर भाजपा पर स्पष्ट रूप से दिख रहा है। इसके अलावा, राज्य में एनडीए की स्थिति भी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

भाजपा की मजबूती को चुनौती देने के लिए जेएमएम और कांग्रेस गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं। इस गठबंधन का उद्देश्य है कि भाजपा को एक ठीक-ठाक प्रतिस्पर्धा मिले और सत्ता बदली जा सके।

राजनीतिक इतिहास की झलक

झारखंड का राजनीतिक इतिहास हमेशा से ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है। यहां अक्सर राष्ट्रपति शासन की स्थिति बनी रही है और राजनीतिक दल बदलना एक आम बात है। हेमंत सोरेन के पिछले कार्यकाल में भी इन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार वे सहानुभूति की लहर पर सवार होकर अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं।

इतिहास गवाह है कि जब भी यहाँ के नेता जनता की सहानुभूति पाने में सफल होते हैं, उन्हें चुनावी मैदान में फायदा मिलता है। इसी आधार पर हेमंत सोरेन अपनी रणनीति बना रहे हैं। सतर्क रहने का वक्त है, क्योंकि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है।

राजनीतिक माहौल

राजनीतिक माहौल

झारखंड का राजनीतिक माहौल हमेशा ऊबड़-खाबड़ रहा है। सत्ता में बने रहने के लिए हर पक्ष अपनी पूरी कोशिश करता है और जनता को अपने पक्ष में लाने की हर संभव कोशिश करता है। आगामी चुनाव में हेमंत सोरेन कितने सफल होंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।

हेमंत सोरेन का सहानुभूति कार्ड कितना प्रभावी होगा, यह चुनाव के परिणाम ही बताएंगे। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुकाबला कड़ा होगा और राज्य की जनता ही निर्णय करेगी कि वह किसे अपना नेता चुनती है।

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