कर्नाटक सरकार के 14 घंटे काम प्रस्ताव पर नासकॉम का विरोध

/ द्वारा रिमा भारती / 0 टिप्पणी(s)
कर्नाटक सरकार के 14 घंटे काम प्रस्ताव पर नासकॉम का विरोध

नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नासकॉम) ने कर्नाटक सरकार के उस प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया है जिसमें आईटी कर्मचारियों के काम की अवधि को 14 घंटे प्रतिदिन करने की बात कही गई है। वर्तमान में, कर्नाटक शॉप्स एंड कमर्शियल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत कर्मचारियों को दिन में अधिकतम 10 घंटे काम करने की अनुमति है, जिसमें ओवरटाइम भी शामिल है।

कर्नाटक सरकार का यह प्रस्ताव, जो 14 घंटे कार्य दिवस को सामान्य बनाना चाहता है, न केवल आईटी उद्योग में विवाद का विषय बन गया है बल्कि इसके स्वीकृति मिलने पर कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। नासकॉम के प्रतिनिधि, अशिष अग्रवाल, जो पब्लिक पॉलिसी के वाइस-प्रेसिडेंट और हेड हैं, ने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी भी 14 घंटे कार्य दिवस या 70 घंटे प्रति सप्ताह कार्य करने की सीमा का अनुरोध नहीं किया है।

नासकॉम का मानना है कि 48 घंटे प्रति सप्ताह का मानक उपयुक्त है और इसे मानकीकृत करने के लिए लचीलापन होना चाहिए, जिससे कि विभिन्न कंपनियां अपने पैन-इंडिया ऑपरेशन्स को बेहतर ढंग से समायोजित कर सकें। इस प्रस्ताव के विरोध में कर्नाटक राज्य आईटी/आईटीएस कर्मचारी संघ (किटू) ने भी स्वास्थ्य समस्याओं और नौकरी खोने के संभावित खतरे को लेकर विरोध प्रदर्शन किया है।

किटू के प्रतिनिधियों ने लेबर मंत्री संतोष लाड से मुलाकात की और अपनी चिंताओं को सामने रखा। विभिन्न अध्ययनों ने यह साबित किया है कि लंबे कार्यकाल से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे कि डिप्रेशन, स्ट्रोक और ह्रदय रोग उत्पन्न हो सकते हैं। यह प्रस्ताव उस विवादास्पद ड्राफ्ट बिल के बाद आया है जिसमें कर्नाटक में स्थानीय लोगों के लिए नौकरी आरक्षण की बात कही गई थी, लेकिन उद्योगों के विरोध के कारण उसे स्थगित कर दिया गया था।

विकलांगता के मुद्दे और स्वास्थ्य प्रतिकूल असर

कई अध्ययनों ने यह साबित किया है कि लंबे कार्यकाल वाले कर्मचारियों में स्वास्थ्य समस्याएं अधिक होती हैं। अमेरिकन जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल मेडिसिन द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, लंबे समय तक काम करने से तनाव, डिप्रेशन और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, ह्रदय रोग, स्ट्रोक और मोटापे जैसी शारीरिक समस्याएं भी आम हैं।

समानता और रोजगार

कार्य क्षेत्र में समानता हमेशा एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, और यह प्रस्ताव इसे और जटिल बना सकता है। यदि 14 घंटे कार्य दिवस का प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है, तो न केवल कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा बल्कि कई कर्मचारियों के लिए रोजगार छिनने का खतरा भी बढ़ सकता है। इससे पहले भी, कर्नाटक सरकार के कुछ प्रस्तावों ने इसी प्रकार के प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न किए हैं, जैसे कि स्थानीय लोगों के लिए नौकरी आरक्षण।

कर्तव्यों की पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता

कर्तव्यों की पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता

वर्तमान समय में जब तकनीकी प्रगति तेजी से हो रही है और उत्पादन क्षमता बढ़ रही है, इस प्रकार के प्रस्ताव मुख्यतः संस्था और कर्मचारियों के बीच तनाव को बढ़ाते हैं। नासकॉम का यह कथन कि कोई भी कंपनी 14 घंटे कार्य दिवस की मांग नहीं कर रही, यह साबित करता है कि उद्योग जगत इस प्रकार के कठोर नियमों के बिना ही फलफूल रहा है।

अ Conclusion

सरकार को चाहिए कि वह ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर दोबारा विचार करे जो कर्मचारियों की सेहत और उनके मानसिक स्थायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। पुराना और स्थापित 48 घंटे प्रति सप्ताह का मानक ही उपयुक्त है और इसमें लचीलापन होना चाहिए ताकि कंपनियां बेहतर प्रदर्शन कर सकें।

एक टिप्पणी लिखें

*

*

*