श्रीधर वेम्बू की आवाज: सिलिकॉन वैली पर प्रतिक्रियात्मक नजरिया
ज़ोहो कार्पोरेशन के संस्थापक और सीईओ श्रीधर वेम्बू ने हाल ही में सिलिकॉन वैली में कॉर्पोरेट प्राथमिकताओं की कड़ी आलोचना की है। वेम्बू ने विशेष रूप से फ्रेशवर्क्स जैसी कंपनियों की छंटनी की प्रवृत्ति पर सवाल उठाया है, जो कि ज़ोहो की प्रतियोगी है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या 'सोशलिस्ट' कहे जाने का अर्थ यह है कि एक कंपनी अपने सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति, यानी कर्मचारियों के कल्याण की देखभाल करे।
सिलिकॉन वैली के परिपेक्ष्य में, जहां अक्सर कर्मचारियों के स्थान पर शेयरधारकों के लाभ को प्राथमिकता दी जाती है, श्रीधर वेम्बू का यह दृष्टिकोण संतुलित विचारधारा की आवश्यकता को प्रकट करता है। उन्होंने अपने लिए उदाहरण स्वरूप एनवीडिया और एएमडी जैसी कंपनियों का उल्लेख किया है जिन्होंने अपने इंजीनियरों को लंबी अवधि के लिए रखा और तकनीक के क्षेत्र में गहराई से काम किया। इन कंपनियों के सीईओ ताइवान से आते हैं, जिन्होंने टीएसएमसी जैसी सफल डीप टेक कंपनियों के निर्माण में अपनी भूमिका निभाई है, जो कर्मचारियों की गुणवत्ता को प्राथमिकता देती हैं।
अमेरिकी कॉर्पोरेट संस्कृति की समीक्षा
वेम्बू ने अमेरिकी कॉर्पोरेट संस्कृति की भी आलोचना की है, जहां कंपनियां वाल स्ट्रीट को संतुष्ट करने पर ध्यान देती हैं, जिससे वे कर्मचारियों के संरक्षण में कमी कर देती हैं। उन्होंने इंटेल का उदाहरण दिया, जिसने वाल स्ट्रीट को प्राथमिकता दी और आखिरकार अपने प्रतियोगियों के सामने पिछड़ गई। वेम्बू का मानना है कि यह प्रणाली अमेरिकी पूंजीवाद के बाद के चरण के हेज फंड और पीई ड्रिवन वित्तीयतंत्र की पराकाष्ठा है, जो दीर्घकालिक रूप से अस्थिर है और सिविल विवाद पैदा कर सकती है।
पिछले साल सिलिकॉन वैली बैंक के पतन पर भी वेम्बू ने चर्चा की, जब कई तकनीकी उद्यमियों ने बेलआउट का स्वागत किया। उन्होंने प्रतिक्रिया दी कि यह उन 'पूंजीवादी' मूल्यों के विपरीत है जिन्हें वे उपदेश देते हैं। इसने उन्हें विचार करने पर विवश किया कि क्या भारत को इस प्रणाली को अपनाना चाहिए या अपने कर्मचारियों का ध्यान रखने और 'धर्म' के अनुरूप वास्तविक पूंजीवाद का अभ्यास करना चाहिए।
भारत के लिए नयी दिशा की आवश्यकता
वेम्बू की आलोचनात्मक दृष्टि एक सवाल उठाती है कि क्या भारत को सिलिकॉन वैली की प्रक्रिया का अनुकरण करना चाहिए या 'वास्तविक पूंजीवाद' के एक नए मॉडल की आवश्यकता है। वेम्बू का सुझाव है कि कंपनियों को कर्मचारियों की देखभाल करनी चाहिए, जो न केवल नैतिक है बल्कि संगठन की दीर्घकालिक सफलता के लिए भी आवश्यक है। भारत के संदर्भ में, जहां आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ सामाजिक संरचना का भी महत्व है, वेम्बू का विचार यह स्पष्ट करता है कि एक संतुलित और दीर्घकालिक व्यापार की रणनीति कैसे होनी चाहिए।
वेम्बू ने यह भी इशारा किया कि भारतीय कंपनियों को अपने कर्मचारियों के कल्याण को बढ़ावा देना चाहिए, जो संस्कारिता और सफल व्यापारिक रणनीति में संगतिकता की भावना को जनाता है। यह दृष्टिकोण विस्तार की आवश्यकता को इंगित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सामाजिक अनुशासन का पालन किया जाता है, जो कि 'धर्म' का एक प्रमुख हिस्सा है।
श्रीधर वेम्बू का यह विचार प्रक्रिया व्यापारी दुनिया में एक मानव केंद्रित दृष्टिकोण की पहल करता है, जो आधुनिक कॉर्पोरेट दुनिया में संसाधनों के सही उपयोग की दिशा में एक संवेदनशील सोच की दिशा दर्शाता है।
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